गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

उपन्यासों में जनवादी चेतना

सामाज वस्तुतः ऐसे वर्गों से बनता है जो किन्हीं निश्‍चित प्रयोजनों के लिए एक दूसरे के संपर्क में आते हैं. अर्थात्‌ समाज व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों की व्यवस्था है. आज समाज विभिन्न स्तरों अर्थात्‌ आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक के साथ साथ भाषिक स्तर पर भी पर बँट गया है. एक ओर वह उच्च, मध्य और निम्न वर्गों में विभाजित है तो दूसरी ओर सर्वहारा एवं पूँजीपति के रूप में विभाजित है. समाज में व्याप्त वर्ग संघर्ष, वर्ण संकीर्णता, सांप्रदायिकता, जातिभेद और भाषा भेद ने जनमानस को झकझोर दिया है. इसके परिणाम स्वरूप समकालीन कथासाहित्य में जनवादी चेतना मुखरित हुई. डॉ. महेंद्र कुमार (1976) ने अपनी शोध पुस्तक ‘हिंदी के प्रमुख उपन्यासों में जनवादी चेतना ’ (2009) में प्रेमचंद, यशपाल, फणीश्वरनाथ रेणु, रांगेय राघव, हजारी प्रसाद द्विवेदी और जयशंकर प्रसाद के उपन्यासों में चित्रित जनवादी चेतना का विवेचन -विश्लेषण किया है.


लेखक ने यह प्रतिपादित किया है कि समाज व्यक्तियों का समूह भर नहीं, बल्कि उनके पारस्परिक संबंधों की व्यवस्था भी है. जनवाद इस व्यवस्था की रीतियों, कार्य विधियों, अधिकार, पारस्परिक सहयोग, उनके समूहों एवं विभाजनों का सैधांतिक और व्यावहारिक अध्ययन करता है.वस्तुतः प्रजातंत्र जनवाद का व्यावहारिक रूप है. लेखक ने यह निरूपित किया है कि परंपरागत रूढ़ियों एवं जीवन चिंतन में बदलाव लाने में साहित्य सहायक घटक है तथा जनवादी चेतना वास्तव में मानव जीवन की वह अवधारणा है, जो जीवन के समग्र भेद को मिटाती है.


जनवादी चेतना की अवधारणा को स्पष्ट करने के बाद लेखक ने कहा है कि हिंदी के उपन्यासों में जनवादी चेतना सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं पारिवारिक समस्याओं के रूप में प्रस्फुटित हुई है. उनकी मान्यता है कि साहित्य में वैश्विक चेतना को फैलाने में जनवादी चेतना की अहम भूमिका है.


लेखक का यह प्रयास सराहनीय है, परंतु अनेक स्थलों पर अस्वाभाविक शब्द प्रयोग और टंकण की अशुद्धियाँ खटकती हैं. जैसे -
प्रस्तुत ग्रंथ महाप्रबंध..... (भूमिका)

यह मौलिक विवेचन यह उपन्यासकार पूर्णतः जनता के पक्षधर हैं. (भूमिका)

जनता के चैयन - चामन को एकदम पायमाल करनेवाले जन विरोधी शोषक शक्तियों का खंडन इसमें किया गया है. (पृष्ठ - 37)

प्रस्तुत शोध महाप्रबंध का उपसंहार अध्याय ही पूर्व अध्यायों में जो शोधकार्य किया है, उन सबका सार समुच्चय इस अध्याय में संप्रदत्त है. (पृष्ठ - 198)

____________________________________________
हिंदी के प्रमुख उपन्यासों में जनवादी चेतना /
डॉ.महेंद्र कुमार /
2009 /
मिलिंद प्रकाशन,
4-3-178/2, कंदास्वामी बाग, हनुमान व्यायामशाला की गली, सुलतान बाज़ार, हैदराबाद - 500 095 /
पृष्ठ - 243 /
मूल्य - रु. 300
______________________________________________

1 टिप्पणी:

शिवा ने कहा…

aapke blog ka prastuteekaran bahut sundar hai.