बुधवार, 11 जनवरी 2012

एक समर्पित साहित्यकार के समग्र मूल्यांकन का सार्थक प्रयास


हिंदी के लेखकों को कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. प्रकाशकों ने तो ऐसी अंधेरगर्दी मचा रखी है कि आपके पैसे से छापकर आपकी किताब आप ही को बेच भी देंगे. विचारधाराओं के झंडे बरदारों ने एक अलग कोहराम मचा रखा है. इतनी तरह के खेमें, वाद और विमर्श हैं कि नई प्रतिभा चौराहे पर खड़ी सिर धुनती है पर तय नहीं कर पाती कि मैं इधर जाऊँ या उधर जाऊँ, मैं किधर जाऊँ.

ऐसे वातावरण के बीच भी कुछ व्यक्ति और संस्थाएं हैं जो सृजन, संपादन और प्रकाशन के क्षेत्र में सेवा भाव से कार्यरत है. डा.महेश दिवाकर भी ऐसे ही व्यक्तित्व की संज्ञा है. एक ओर वे राष्ट्रीय भावों से ओत प्रोत, जीवन मूल्यों से भरपूर स्वास्थ्य साहित्य की रचना में लीन हैं तथा दूसरी ओर अनेक साहित्यिक आयोजनों के माध्यम से गुमनामी की धूल में डूबे समर्थ और श्रेष्ठ साहित्यकारों को सामने लाने का काम भी कर रहे हैं. अखिल भारतीय साहित्य कला मंच के माध्यम से अनेक रचनाकारों को प्रोत्साहित करके उन्होंने प्रकाशकों के शोषण से बचाया है.

ऐसे विरले साहित्य सेवी के रचनाकर्म के मूल्यांकन पर केंद्रित है डा.अभय कुमार, डा.मीना कौल और डा.बाबूराम द्वारा संपादित ग्रंथ – 'समीक्षा के निकष पर डा.महेश दिवाकर' (2011). 

स्मरणीय है कि डा.महेश दिवाकर ने अपनी कविताओं, कहानियों, निबंधों, समीक्षाओं और यात्रावृत्तों द्वारा हिंदी साहित्य की श्रीवृद्धी की हैं. उनकी कई काव्य कृतियाँ अपने राष्ट्रीय दृष्टिकोण के लिए देश भर में सराही गई हैं. जैसे वीरबाला कुंवर अजबदे पंवार, महासाध्वी अपाला, वीरांगना चेन्नम्मा, जय गुरूजी जय शिवजी, अन्याय के विरुद्ध, पथ की अनुभूतियाँ, काल भेद, भावना का मंदिर, आस्था के फूल, विविधा, युवकों सोचो, सूत्रधार है मौन तथा रंग रंग के दृश्य. इसके अलावा उनके द्वारा संपादित कृतियों की एक लंबी सूची है. इसमें संदेह नहीं कि इनसे हिंदी साहित्य की अभिवृद्धि हुई है तथा इनसे हिंदी की वर्तमान रचना दिशा का सम्यक बोध होता है. संपादित कृतियों का विशेष महत्व इस बात के लिए भी है कि इनसे राष्ट्रीय स्तर पर देश के समस्त हिंदी सेवियों के मध्य ऐक्य और संगठन का सूत्रपात हुआ है. 

इस ग्रंथ में डा.महेश दिवाकर के साहित्यिक व्यक्तित्व के विविध आयामों के साक्षात्कार का अवसर पाठक को मिलता है. व्यक्तित्व और कृतित्व विषयक खंडों के बाद पूरी गहराई से उनकी कृतियों का समीक्षात्मक विश्लेषण देश भर के साहित्य समीक्षकों द्वारा किया गया है. उदाहरण के लिए 'वीरबाला कुंवर अजबदे पंवार' की समीक्षा करते हुए डा.एम.शेषन कहते हैं कि महाराणा प्रताप की सहधर्मिणी के व्यक्तित्व को उजागर करनेवाला यह काव्य इतिहास द्वारा उपेक्षित स्त्री को न्याय देने की कोशिश करता है. इसी प्रकार डा.हरमहेंद्र सिंह बेदी 'अन्याय के विरुद्ध' की पड़ताल करते हुए यह निष्कर्ष देते हैं कि जन जन के हृदय की पीड़ा और उससे जूझने की आत्मशक्ति उत्पन्न करने में कवि का सार्थक प्रयास उसे उँगलियों पर गिने जाने वाले साहित्यकारों की श्रेणी में ला खड़ा करता है. डा.पद्मा पाटिल ने 'काल भेद' की समीक्षा करते हुए दिखाया है कि कवि ने भिन्न भिन्न कोणों से राजनीति के विभिन्न दूषित पक्षों को जिस ढंग से उजागर किया है वह उसके सूक्ष्म निरीक्षण तथा समाज और देश के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इसी क्रम में प्रो. शेरसिंह बिष्ट ने 'वीरांगना चेन्नम्मा' को नारी शक्ति की यशोगाथा मानते हुए यह प्रतिपादित किया है कि दोहों में रचित यह काव्य राष्ट्रहित और लोक मंगल की लोकरंजक प्रस्तुति के कारण हर युग में प्रासंगिक बना रहेगा.

अभिप्राय यह है कि 133 आलेखों और दो परिशिष्टों से निर्मित 720 पृष्ठों का यह महाकाय समीक्षा ग्रंथ डा.महेश दिवाकर के अवदान का सम्यक मूल्यांकन करने का सफल और स्तुत्य प्रयास है. संपादक मंडल इसके लिए बधाई का पात्र है.


समीक्षा के  निकष  पर डा.महेश दिवाकर
(सं) डा.अभय कुमार, डा.मीना कॉल, डा.बाबूराम
प्रकाशक – विश्व पुस्तक प्रकाशन, बी.जी.6/304 ए, पश्चिम विहार, नई दिल्ली – 63
पृष्ठ – 720
मूल्य – रु.500/-


1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

महेश दिवाकर जी से भेंट कराने के लिए आभार} बढिया समीक्षा के लिए बधाई। गागर में सागर भर दिया है आपने।