रविवार, 26 फ़रवरी 2012

हाइकू

चाय

चाय आ गई

ठंडी हो जाए कहीं

पी लो न भई




राह

कहाँ जा रहे

जाएँगे कहाँ भला

धक्के खा रहे


हैदराबाद



हैदराबाद

कुली की मुहब्बत

रहे आबाद



गीत

गीत जो गाए

हमने रोज रोज

फूल खिलाए


पंछी




पंछी के पर

नोच दिए तुमने,

कहके घर.





काँटा




नुकीला काँटा

धंसा पाँव में मेरे,

रोये तुम थे.

2 टिप्‍पणियां:

Vinita Sharma ने कहा…

पिंजरे के पंछी के लिए कुछ पंक्तियाँ "जो पालते हैं पोसते वो फिर परों को नोचते ,बंद द्वार खोलते मंद स्वर में बोलते

नाप लो आकाश को उड़ान ही उड़ान है .काँटा लगा मुझको रोये तुम बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति इसका विरोधाभास है

जाके पैर न फटी विवाई सो क्या जाने पीर पराई बधाई नीरजा जी .

Vinita Sharma ने कहा…

पिंजरे के पंछी के लिए कुछ पंक्तियाँ "जो पालते हैं पोसते वो फिर परों को नोचते ,बंद द्वार खोलते मंद स्वर में बोलते

नाप लो आकाश को उड़ान ही उड़ान है .काँटा लगा मुझको रोये तुम बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति इसका विरोधाभास है

जाके पैर न फटी विवाई सो क्या जाने पीर पराई बधाई नीरजा जी .