सोमवार, 4 मार्च 2013

सामान्य साहित्य

[प्रो. ऋषभ देव शर्मा के कक्षा-व्याख्यान पर आधारित ]

तुलनात्मक साहित्य का अध्ययन करते समय तीन परस्पर निकटस्थ अवधारणाओं से टकराना पड़ता है. ये हैं – राष्ट्रीय साहित्य (National Literature), विश्व साहित्य (World Literature) और सामान्य साहित्य (General Literature). प्रो. इंद्रनाथ चौधुरी ने ‘तुलनात्मक साहित्य की भूमिका’ में इन अवधारणाओं को स्पष्ट करते हुए तुलनात्मक साहित्य और सामान्य साहित्य के संबंध पर सम्यक प्रकाश डाला है. 

साधारण रूप से सामान्य साहित का अर्थ हम किसी भी साहित्य के प्रचलित स्वरूप से लगा सकते हैं. परंतु यहाँ यह एक पारिभाषिक पद के रूप में व्यवहृत है जिसकी अलग अलग विद्वानों ने अलग अलग परिभाषाएँ दी हैं. जैसे – सामान्य साहित्य का प्रारंभिक अर्थ था काव्यशास्त्र या साहित्य सिद्धांत का अध्ययन. जेम्स मांटुगमरी ने 1833 में सामान्य साहित्य पर भाषण देते हुए इसके अंतर्गत काव्यशास्त्र अथवा सामान्य सिद्धांत पर ही चर्चा की थी. इसे प्रकार इरविन कोपेन ने तो स्पष्ट कहा है की सामान्य साहित्य मूलतः साहित्य सिद्धांत ही है. इसी बात को आगे बढ़ाते हुए हार्स्ट फ्रेंज़ ने कहा ही कि सामान्य साहित्य से तात्पर्य है साहित्यिक प्रवृत्तियों, समस्याओं एवं सिद्धांतों का सामान्य अध्ययन अथवा सौंदर्यशास्त्र का अध्ययन. यहाँ यह बात स्मरणीय है कि तुलनात्मक साहित्य भी साहित्य सिद्धांत अथवा काव्यशास्त्र का भी अध्ययन करता है. मगर उसके अध्ययन की पद्धति तुलनात्मक होती है जबकि सामान्य साहित्य इस प्रकार की किसी पद्धति का निर्धारण नहीं करता. 

दरअसल सामान्य साहित्य पद का प्रयोग कुछ पाठ्यक्रमों में परस्पर अंतर को दर्शाने के लिए किया जाता रहा है. जैसे कि अमेरिका में सामान्य साहित्य उन विदेशी साहित्य के पाठ्यक्रमों या प्रकाशनों के लिए किया जाता है जो या तो अंग्रेज़ी अनुवादों में उपलब्ध हैं या राष्ट्रीय साहित्य के पाठ्यक्रमों के अंतर्गत स्वतंत्र अध्ययन के विषय हैं. कभी कभी अनेक साहित्यों की कृतियों के संग्रह, आलोचनात्मक अध्ययन या विवरण को भी इस वर्ग में स्थान दिया जाता है. परंतु लगभग ऐसी ही विषयों के लिए अलग अलग संदर्भों में तुलनात्मक साहित्य और विश्व साहित्य जैसे नामकरण भी कम में लिए जाते हैं. अतः कहना होगा कि सामान्य साहित्य की अवधारणा बहुत स्पष्ट नहीं है. रेनेवेलक ने भी इसे अयुक्तियुक्त और अव्यावहारिक माना है. वान्टिग्हेम ने तुलनात्मक और सामान्य साहित्य का अंतर स्पष्ट करते हुए कहा है कि तुलनात्मक साहित्य दो साहित्यों के आपसी संबंधों के अध्ययन तक सीमित है जबकि सामान्य साहित्य का संबंध उन आंदोलनों और फैशनों से है जो अनेक साहित्यों में विद्यमान दिखाई देते हैं. इसमें संदेह नहीं कि यह अंतर भी बहुत सूक्ष्म अंतर है और इन दोनों प्रकार के साहित्यों की सीमाएँ एक-दूसरे पर अपनी छाया अवश्य डालती हैं. 

अनतः क्रेग के निम्नलिखित मत को यहाँ उद्धृत करना समीचीन होगा कि – 

“राष्ट्रीय साहित्य की चारदीवारी के भीतर जो अध्ययन है वह राष्ट्रीय साहित्य है और इस चारदीवारी के परे साहित्य का अध्ययन तुलनात्म साहित्य है तथा दीवारों के ऊपर जो साहित्यिक अध्ययन है वह सामान्य साहित्य है.” 

जैसा कि प्रो.चौधुरी ने कहा है कि पता नहीं इस प्रकार के सीमा निर्धारण से इनमें अंतर निश्चित होता पाता है या नहीं परंतु इनके पारस्परिक संबंध अपने आप में बहुत स्पष्ट है. 

द्रष्टव्य - इंद्रनाथ चौधरी, तुलनात्मक साहित्य की भूमिका, पृ. 23-26

1 टिप्पणी:

dr vinita sinha ने कहा…

good evening neeraja ji
'Saamanya Sahitya' par aapne jo saamagri bheji hai wo bahut hi upayogi hai...main bharteeya saahitya hi padha rahi hu...mujhe apne vidhyarthiyo ko samjhane main aur bhi aasani ho gayi...aasha hai aage bhi aise hi sharmaji ke vyakhano se hum sabko unki kaksha main upasthith na rahte hue bhi hamari jnanavradhi hogi.
dhanyawaad...'sharma sir ko naman'
dr vinita sinha(hindi mahavidyalay)