शनिवार, 27 अप्रैल 2013

कोलाहल


चिडियाँ चहक रही हैं
बगियाँ महक रही हैं.
बच्चियों की हँसी से
खिलखिला रहा है आँगन
खुशी से घर की आँखें थिरक उठी हैं.

1 टिप्पणी:

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

नीरजा जी फिलहाल पांच बरस की बच्ची पर हुए अत्याचार से देश पीडित है ऐसे में आपकी लघु कविता और साथ जोडी तस्विर खुशी देती है। कविता और आपकी खुशी बनी रहें।