रविवार, 12 मई 2013

लू चल रही है

हवा गरम है
तन भी
मन भी.

तरस रही हैं आँखें -
तुम आते क्यों नहीं?

मन मचल रहा है -
कहाँ रह गए मीत?

1 टिप्पणी:

Madan Mohan Saxena ने कहा…

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