बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

पराभव निश्चित है

तेलुगु मूल : कालोजी नारायण राव 
अनुवाद : गुर्रमकोंडा नीरजा 

प्रभुता के मद में
राजनीतिज्ञ झूम रहे हैं
अधिकारी संपत्ति स्वाहा कर
सत्यवान बन घूम रहे हैं
जनहित के जीवन-आदर्श
उनके बोझ तले टूटकर कराह रहे हैं
जनतंत्र का परदा खिसक गया है
निरंकुशता ने फन फैला दिया है,
फिर भी नित्य पूजा चल रही है
नागपंचमी जैसी !
सत्यवान विषपान करके
तत्वों का मंथन कर रहे हैं,
पराभव निश्चित है !
पाप का मद पक गया है
सत्तालोलुप राजनीति बन गई है
मदांध कसरत.
जुड़वाँ पिशाचों के दत्तक
चाल पर चाल चलकर
एक दूसरे को गिरा रहे हैं
लूट के माल के लिए.
काम के भूत की सोहबत;
पराभव निश्चित है !

(1966)

* मेरी आवाज (पद्मविभूषण डॉ. कालोजी नारायण राव की चयनित कविताएँ)/ 2013/ आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी, हैदराबाद/ पृ. 109

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