रविवार, 25 मई 2014

नहीं रहे जादुई यथार्थवाद के जादूगर !

गेब्रियल गार्सिया मार्केज़
6 मार्च 1927 - 17 अप्रैल 2014
गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ उर्फ गाबो ! यह नाम हिंदी साहित्य जगत के लिए अपिरिचित नाम नहीं है; अंग्रेजी साहित्य जगत के लिए तो सुपरिचित है ही. ‘वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिटयूड’ (1967) के रचनाकार के रूप में विश्वविख्यात साहित्यकार मार्केज़ भले ही भौतिक रूप से साहित्य जगत से विदा ले चुके हैं पर अपनी कालजयी कृतियों के माध्यम से पाठकों के हृदय में अमिट छाप छोड़ गए हैं. 

मार्केज़ का जन्म 6 मार्च 1927 को कोलंबिया के अरैकाटैका (Aracataca) में हुआ था. उनका बचपन ननिहाल में गुजरा. उनके नाना कर्नल निकोलास रिकर्डो मार्केज़ ने गेब्रियल को परियों की कहानियों के स्थान पर युद्धों की भीषण त्रासदी के विवरण सुनाकर उन्हें यथार्थ दुनिया के साथ जोड़ा. दूरसे ओर, उनकी नानी जादुई कहानियों को इस तरह सुनाती थीं कि सुनने वाले उन्हें सच मान बैठते थे. इस तरह ग्रेब्रियल के मन पर बचपन से ही एक छाप जादूई किस्म की कहानियों की पड़ी और दूसरी छाप यथार्थपरक किस्सों की. इनका इतना गहरा प्रभाव उनके अचेतन पर पड़ा कि बाद में वह जादुई यथार्थवाद की शैली के रूप में उनकी रचनाओं में प्रस्फुटित हुआ. उनकी राजनैतिक एवं साहित्यिक विचारधारा के गठन में भी काफी हद तक इन कहानियों का योगदान रहा. अतः कहा जा सकता है कि गेब्रियल के व्यक्तित्व और वैचारिकता के निर्माण में उनके नाना-नानी का योगदान उल्लेखनीय है. 

कोलंबिया राष्ट्रीय विश्वविद्यालय में क़ानून की पढ़ाई के साथ साथ गेब्रियल मार्केज़ ने अपनी आजीविका पत्रकारिता से शुरू की. 1948 और 1949 में उन्होंने ‘एल यूनिवर्सल’ (El Universal) में काम किया तथा 1950-1952 तक रोम और पैरिस में ‘स्पेक्टेटर’ के संवाददाता के रूप में कार्यरत रहे. उसके बाद उन्होंने 1959 से 1961 तक हवाना और न्यूयार्क में क्यूबा की संवाद एजेंसी के लिए काम किया. उनके लिए पत्रकारिता आजीविका थी और साहित्य शौक. 

गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ के उपन्यासों में ‘इन ईविल अवर’ (In Evil Hour, 1962), ‘वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिटयूड’ (One Hundred Years of Solitude,1967), ‘द ऑटम ऑफ द पैट्रिआर्क’ (The Autumn of the Patriarch, 1975), ‘लव इन द टाईम ऑफ कॉलेरा’ (Love in the Time of Cholera, 1985), ‘द जेनरल इन हिस लेबरिंथ’ (The General in His Labyrinth, 1989) तथा ‘ऑफ लव एंड अदर डेमंस’ (Of Love and Other Demons,1994) काफी चर्चित हैं. लघुउपन्यासों में ‘लीफ स्टॉर्म’ (Leaf Storm, 1955), ‘नो वन राइट्स टु द कर्नल’ (No One Writes to the Colonel, 1961), ‘क्रॉनिकल ऑफ ए डेथ फोरटोल्ड’ (Chronicle of a Death Foretold, 1981) तथा ‘मेमोरीज ऑफ माइ मेलंकॉली व्होर्स’ (Memories of My Melancholy Whores, 2004) उल्लेखनीय हैं. उनकी अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं – कहानी संग्रह : ‘आइज़ ऑफ ए ब्लूडॉग’ (Eyes of a Blue Dog, 1947), ‘बिग मामास फ्युनरेल’(Big Mama's Funeral, 1962), ‘द इनक्रेडिबल एंड सैड टेल ऑफ इन्नोसेंट एरंडीरा एंड हर हार्टलेस ग्रैंडमदर’ (The Incredible and Sad Tale of Innocent Erendira and Her Heartless Grandmother (1978), ‘स्ट्रेंज पिल्ग्रिम्स’ (Strange Pilgrims, 1993) आदि. 

उनका प्रथम लघुउपन्यास ‘लीफ स्टार्म’ 1955 में प्रकाशित हुआ था. इसमें लेखक ने एक ऐसे बच्चे के अनुभवों, अनुभूतियों तथा मानसिक स्थिति को मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त किया है जिसने जिंदगी में पहली बार मृत्यु से साक्षात्कार किया है. यह वस्तुतः एक मनोवैज्ञानिक उपन्यास है जो बालक के मनोविज्ञान को परत-दर-परत खोलता है. साथ ही इसमें लेखक ने कर्नल की बेटी इसाबेल के दृष्टिकोण को उजागर किया है जिसमें उत्तरआधुनिक विमर्श, मुख्य रूप से स्त्री विमर्श, के अनेक पहलू उभर कर सामने आए हैं. उसके बाद वे लगातार सृजनात्मक साहित्य लिखते रहे. शिल्प और शैली की दृष्टि से उनकी रचनाएँ श्रेष्ठ मानी जाती हैं. 

1972 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित उनके कालजयी उपन्यास ‘वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिटयूड’ (One Hundred Years of Solitude,1967) आज भी बहुचर्चित है. कहा जाता है कि 18 वर्ष की आयु से ही गेब्रियल के मन में बचपन की स्मृतियों को अक्षरबद्ध करने की प्रबल इच्छा थी. यह इच्छा समय के साथ बलबती होती गई. अपने विचारों एवं बचपन की स्मृतियों को कथासूत्र के एक निश्चित साँचे में ढालने के लिए वे जूझते रहे. पूरे उपन्यास को लिखने के लिए उन्हें डेढ़ साल लग गया. उस समय उनके परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय हो गई. परिवार को चलाने के लिए उधार लेना पड़ा. लेकिन जब 1967 में यह उपन्यास पुस्तक के रूप में पाठक जगत के सामने आया तो उनकी आर्थिक समस्याएँ दूर हो गईं. इसकी 2 करोड़ से अधिक प्रतियाँ बिक चुकी हैं. विश्व की लगभग 37 भाषाओं में इसका अनुवाद हो चुका है. 

‘वन हंड्रेड इयर्स ऑफ सॉलिटयूड’ (एकांत के सौ वर्ष). 363 पृष्ठों के इस उपन्यास में लेखक ने एक काल्पनिक परिवार बुएंदिआ (Buendia) की सात पीढ़ियों की कथा को एकसूत्र में पिरोया है. इस कहानी का घटना स्थल कोलंबिया देश के ओरिनोको नदी के तट पर स्थित माकोंदो नामक शहर है. इस शहर को बुएंदिआ परिवार का पितामह जोस आर्कादियो बुएंदिआ (Jose Arcadio Buendia) स्थापित करता है. इस उपन्यास में लेखक ने सच (यथार्थ) और जादू का सम्मिश्रण बखूबी किया है. संपन्न जीवन जीने के लिए एक दिन जोस आर्कादियो बुएंदिआ अपनी पत्नी के साथ कोलंबिया से किसी दूसरे शहर में बसने के लिए जाता है. रात को वे दोनों ओरिनोको नदी के किनारे रुक जाते हैं. जोस अजीब सपना देखता है. उस सपने में पूरी तरह से शीशों से भरा हुआ एक शहर देखता है जो दुनिया की सब चीजों के बारे में जानकारी देता है. वह मन ही मन निश्चय कर लेता है कि वह नदी के तट पर स्थित उस माकोंदो शहर को ढूँढ़ निकालेगा. वह इधर उधर भटकता है. जंगल जंगल घूमता है और पाता है कि वह एक स्वप्नलोक है. आदर्शलोक है. वह यह पाता है कि माकोंदो शहर एक द्वीप है. वहाँ से जोस अपनी धारणाओं के अनुसार दुनिया का आविष्कार करने लगता है. बुएंदिआ परिवार बदकिस्मती का शिकार हो जाता है. समुद्री तूफ़ान शीशों के शहर माकोंदो को तहस नहस कर देता है. कथा के अंत में एक पात्र उस अनबूझे रहस्य को विखंडित करता है जिसके कारण बुएंदिआ परिवार सात पीढ़ियों से शापग्रस्त है. उस रहस्यमय संदेश में हर वह सूचना निहित होती है जिसके कारण सौभाग्य और दुर्भाग्य बुएंदिआ परिवार के साथ होते हैं. 

इस उपन्यास में प्रयुक्त जादुई यथार्थवादी शैली ने सबका ध्यान आकृष्ट किया है. एक ओर लेखक ने सच्ची घटनाओं को आधार बनाकर उपन्यास का सृजन किया तो दूसरी ओर बीच बीच में जादुई घटनाओं का मिश्रण भी बखूबी किया है. लेखक ने प्रतीकों और रूपकों के माध्यम से कथासूत्र को बुना है. एक महत्वपूर्ण बात यह है कि इस उपन्यास में लेखक ने उत्तर कोलंबिया के माकोंदो शहर से संबंधित ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर किया है. साथ ही मुख्य पात्रों के चित्रण में अतीत और समय की जटिलताओं को पिरोया गया है. उपन्यास के आदि से लेकर अंत तक सभी पात्र भूतों से साक्षात्कार करते हैं. भूत यहाँ प्रतीक हैं अपने अतीत के जो व्यक्ति को हर वक्त हांट करता है. मार्केज़ ने रंगों को भी प्रतीकों के रूप में प्रयोग किया है. इस उपन्यास में पीतवर्ण और सुवर्ण का ज्यादा प्रयोग दिखाई पड़ता है. ये दोनों ही वस्तुतः साम्राज्यवाद के प्रतीक हैं. सुवर्ण आर्थिक स्थिति का द्योतक है तथा पीतवर्ण परिवर्तन, विनाश और मृत्यु का द्योतक है. माकोंदो शहर बदकिस्मती का द्योतक है. कथा के अंत तक आते आते शीशों का शहर मृगतृष्णा का द्योतक बन जाता है. माकोंदो शहर वह सुनहरा शहर है जिसे निर्मित करने के लिए अमेरिका ने लोगों को दिवास्वप्न दिखाया और अंततः वह केवल एक मृगतृष्णा साबित हुई. इसी यथार्थ को इस उपन्यास में बड़े रोचक ढंग से दर्शाया गया है. इस उपन्यास में मार्केज़ ने लेटिन-अमेरिकी सांस्कृतिक घटकों को भी उभारा है. साथ ही, आशा, आकांक्षा, सुख, दुःख, भय, अकेलापन, संत्रास, विसंगति और मृत्युबोध आदि का चित्रण भी प्रभावी बन पड़ा है. 

8 दिसंबर 1982 को गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ को साहित्य के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था. यह पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम कोलंबिया निवासी गेब्रियल गार्सिया मार्केज़ ही हैं. 17 अप्रैल 2014 को मेक्सिको में उनका देहावसान हो गया. कोलंबिया के राष्ट्रपति ने अपनी श्रद्धांजलि में उन्हें ‘सार्वकालिक महानतम कोलंबियन’ के रूप में याद किया. 

हम उनकी स्मृति के नमन करते हैं.

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