शनिवार, 13 जनवरी 2018

ओ मेरे पिता !



श्री गुर्रमकोंडा श्रीकांत 
जन्म : 5 अगस्त, 1939 
निधन ; 12 जनवरी, 2018 



तुम ऊपर से कठोर दीखते हो 


पर अंदर से बहुत ही कोमल हो

अपने जज्बात को रोक लेते हो

कभी अपना प्यार व्यक्त नहीं करते



अपनी जिम्मेदारियों को निभाते-निभाते

घर की बागडोर संभालते-संभालते

दिन-रात एक कर देते हो

अपनी छोटी-छोटी खुशियों को भी त्याग देते हो



सुख-शय्या को त्याग

अपना सब कुछ दाँव पर लगा

खून-पसीना सींचकर

खुशियाँ उगाते हमारे लिए



जूझते रहे तकलीफों से चट्टान बनकर

अहसास तक होने न दिया

छिपाए रहे मन में लाखों घाव

आँखों से बहने न दिया



पापा !

आज भी मुझे याद है तुम्हारा

गंभीर चेहरा, निश्छल आँखें

डाँट-फटकार और कठोर अनुशासन



पर पापा, आज मैं पहचान गई हूँ

उस चेहरे के पीछे से झाँकती हँसी को

फटकार और अनुशासन के पीछे

तुम्हारे अपार स्नेह को



कभी जब मैं डर जाती थी अँधेरे से

तुम सूर्य बन जाते थे

रोती थी तो गोद में ले

दुलराते थे

कंधों पर बिठाकर घुमाते थे

परियों की कहानी सुनाकर सुलाते थे



जब-जब मैं हालात से टूटी हूँ

तुमने ही संजीवनी पिलाई है

जब भी घायल होकर पीछे हटी हूँ

शस्त्र देकर शक्ति बढ़ाई है



तुम्हीं ने व्यवस्था दी मेरे जीवन को

चिड़िया को तूफान से भिड़ना सिखाया

दिखाया पहचान बनाने का मार्ग

मूर्छित स्वाभिमान को जगाया



काल को पीछे धकेलते

जिजीविषा से भरे

तुम ही तो हो सच्चे योद्धा

धरती के सुंदरतम पुरुष,



मेरे पापा!